आयुर्वेदिक उपयोग:-
कान दर्द, सिर दर्द, जीभ की सूजन,मोतियाबंद, मुंह के अनेक रोग, एड़ियों के फटने, और कान बहने में,पेट में कीड़े होने पर, एसीडिटी, रक्तपित्त,बुखार, घाव, और वात दोष में।
प्रजातियां:-
1.Jasminum grandiflorum Linn. (चमेली)- इसके फूल सफेद होते हैं।
2.Jasminum humile Linn. (स्वर्णयूथिका)- इसे स्वर्ण जाति कहते हैं। लैटिन में इसका नाम Jasminum humile है। इसके फूल पीले सुंगन्धित होते हैं।
पर्याय:-
चमेली, चम्बेली,स्पेनिश जैस्मीन, कैंटालोनियन जैस्मिन, रॉयल जैस्मिन,जनेष्टा, सौमनस्यनी, जाति, सुमना, चेतिका, हृद्यगन्धा, राजपुत्रिका,मालोतो, जयफूलो, यास्मीन,मल्लिगे,चम्बेली,कोडीमल्लीगई, पिच्ची,जाजी, मालती, जाति,चम्बा, जाती,पिचकम, पिक्कामूला,यास्माईन,याशिम,
चमेली के आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव ये हैंः-
◆कफपित्तशामक, वातशामक, त्रिदोषहर, व्रणरोपक, व्रणशोधक, वर्ण्य, वाजीकारक और वेदना स्थापक है।
◆चमेली तेल वातशामक और सौमनस्यजनन है।
◆इसके पत्ते मुखरोग नाशक, कुष्ठघ्न, कंडूघ्न और दांतों के लिए हितकारी है।
1.सिर दर्द से आराम
चमेली के तीन पत्तों को गुल रोगन के साथ पीस लें। इसे 2-2 बूंद नाक में टपकाने से सिर दर्द से आराम मिलता है।
2.मोतियाबिंद
◆चमेली के फूलों की 5-6 सफेद कोमल पंखुडियां लें। इसमें थोड़ी-सी मिश्री के साथ खरल कर लें। इसे आंख की फूली (मोतियाबिन्द) पर लगाएं। इससे कुछ दिनों में मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।
3.वात दोष(लकवा, मासिक धर्म विकार)
◆चमेली की जड़ को पीस लें। इसका लेप करने और तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
4.कान के बहने का इलाज
◆चमेली के 20 ग्राम पत्तों को तिल के 100 मिली तेल में उबाल लें। इसे छानकर कान में 1-1 बूंद डालें। इससे कान का बहना बंद हो जाएगा।
◆चमेली के तेल में एलुवा मिला के कान में डालने से कान में होने वाली खुजली खत्म हो जाती है।
◆चमेली के पत्तों के 5 मिली रस में 10 मिली गोमूत्र मिलाकर गुनगना कर लें। इसे कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
5.जीभ के सूजन
◆चमेली के नए पत्तों को पीसकर जीभ पर लगाएं। इससे जीभ की सूजन ठीक होती है।
6.मुंह के रोग
◆पंचपल्लव (पटोल, निम्ब, जम्बू, आम्र और चमेली के पत्ते) का काढ़ा बना लें। इससे गरारा करने से मुंह के रोग जैसे मुंह के छाले, मसूड़ों से जुड़ी परेशानी आदि की समस्या ठीक होती है।
चमेली के 25 से 50 ग्राम पत्तों का काढ़ा बना लें। इसे गले में रखें। इसके साथ ही पत्तों को चबाने से मुंह के छालों और मसूड़ों के विकारों में लाभ होता है।
7.मुँहासे:-
◆बड़ के पीले पत्ते, चमेली, लाल चन्दन, कूठ, कालीयक चंदन और लोध्र को पीस लें। इससे मुंह पर लेप करें। इससे मुंह पर होने वाले मुंहासे, फोड़े-फुंसी ठीक हो जाते हैं।
◆चमेली के 10-20 फूलों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की कान्ति बढ़ती है।
◆चमेली की जाति के पत्ते, सुपारी और शीतल चीनी के चूर्ण में थोड़ा कपूर मिला लें। इसे जल की भावना देकर 250 मिग्रा की गोली बना लें। 1-1 गोली सुबह और शाम सेवन करें। इससे मुंह के सभी रोगों में लाभ होता है।
◆चमेली की जाति के पत्ते, गुडूची, अंगूर, यवासा (अथवा पाठा), दारुहल्दी और त्रिफला का काढ़ा बना लें। इसमें मधु मिलाकर, मुँह में भर लें। इसे गले के पास रखें। इससे मुंह के छाले की समस्या ठीक होती है।
◆बराबर मात्रा में त्रिफला, पाठा, अंगूर और चमेली के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुंह का छाला ठीक होता है।
8.पेट में कीड़े
◆चमेली के 10 ग्राम पत्तों को पीसकर पानी में मिला लें। इसे पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं।
9.पेट दर्द
◆पेट दर्द से आराम पाने के लिए चमेली के तेल को गर्म कर लें। इस तेल में रूई का फोहा भिगो लें। रूई को नाभि पर रखने से पेट दर्द ठीक होता है।
10.नपुंसकता का इलाज
◆चमेली के फूल और पत्ते के रस को तेल में पका लें। इस तेल की मालिश करने से नपुसंकता में लाभ होता है।
◆चमेली की जड़ को पीसकर लिंग (इन्द्रिय) पर लेप करने से संभोग शक्ति की कमी और नपुंसकता में लाभ होता है।
◆चमेली के पत्ते के रस को तेल में पका लें। 10 मिली तेल में 2 ग्राम राई को पीसकर लिंग (मूत्रेंद्रिय), कमर, और जांघों पर लेप करें। इससे नपुंसकता का इलाज होता है। यह लेप बहुत असरदायक है। इसलिए इसका प्रयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
◆चमेली के 5-10 फूलों को पीसकर लिंग (कामेद्रियों) पर लेप करें। इससे संभोग शक्ति बढ़ती है।
11.एसीडिटी
◆10-20 मिली चमेली की जड़ का काढ़ा बना लें। इसका नियमित रूप से सेवन करने से एसीडिटी और गैस की समस्या में लाभ होता है।
12.सिफलिस
◆चमेली के पत्तों के 20 मिली रस और राल का चूर्ण लें। दोनों को मिलाकर 125 मिग्रा की मात्रा में रोज पीने से सिफलिस (उपदंश) रोग में लाभ होता है। इस दौरान सिर्फ गेहूँ की रोटी, दूध, चावल और घी, शक्कर का ही प्रयोग करना चाहिए।
◆चमेली के पत्तों का काढ़ा बनाकर सिफलिस (उपदंश) वाले घाव को धोएं। इससे लाभ होता है।
◆चमेली के पत्तों से काढ़ा बनाकर सुखा लें। इसे सुखोष्ण काढ़ा से घाव को धोने से फायदा होता है।
◆त्रिफला के सुखोष्ण काढ़ा से अवगाहन करने से भी लिंग (मूत्रेंद्रिय) का तेज दर्द खत्म होता है।
13.बिवाई (पैरों की एड़ियों का फटना)
◆ इसके लिए चमेली के पत्तों के ताजे रस को पैरों के फटी एड़ी पर लगाएं। इससे फायदा होता है।
14.घाव
◆चमेली के पत्तों के काढ़ा से घाव को धोने से घाव ठीक हो जाता है।
◆चमेली के पत्तों को तेल में पका लें। इस तेल को लगाने से घाव भर जाता है।
15.रक्तपित्त
◆कटु पटोल पत्ते, मालती पत्ते, नीमपत्ते, दोनों चन्दन और पठानी लोध्र लें। इनका काढ़ा बना लें। 20-40 मिली काढ़ा में मधु और मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना) में लाभ होता है।
16.चर्म रोग (दाद-खाज-खुजली)
◆चमेली का तेल इसको लगाने से सब प्रकार के जहरीले घाव, खाज, खुजली इत्यादि रोग बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं।
◆चमेली के 8-10 फूलों को पीसकर लेप करें। इससे चर्मरोग और रक्तविकार के कारण होने वाले त्वचा के रोगों में लाभ होता है।
◆चमेली की जड़ को पीसकर लेप करने से दाद का इलाज होता है।
17.फोड़े-फुन्सी
◆चमेली के फूलों को पीसकर लेप करने से फोड़े खत्म होते हैं।
18.बुखार
◆चमेली की पत्ती, आँवला, नागरमोथा और यवासा को बराबर मात्रा में लें। इसका काढ़ा बना लें। काढ़ा में गुड़ मिलाकर दिन में दो बार 30 मिली मात्रा में सेवन करें। इससे बुखार में लाभ होता है।
19.मूत्र रोग,मासिक धर्म
◆चमेली के 10-20 फूलों को पीसकर नाभि और कमर पर लेप करें। इससे मूत्र रोग और मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभ होता है।
20.कुष्ठ रोग
◆चमेली की नई पत्तियाँ, इंद्र जौ, सफेद कनेर की जड़, करंज के फल और दारुहल्दी की छाल को मिलाकर, पीस लें। इसका लेप करने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
◆चमेली की जड़ का काढ़ा बना लें। 20-30 मिली काढ़ा का सेवन करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
चमेली से नुकसान :-
◆इसके अधिक सेवन से गर्म प्रकृति वाले लोगों के सिर में दर्द होता है।
◆इसके दर्द का ठीक करने के लिए, गुलाब का तेल और कपूर का प्रयोग करना चाहिए।
डॉ पंकज कुमार ब्रह्माणिया
चिकित्सक आयुर्वेद
लूनर ऐस्ट्रो।